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नज़्म
सैकड़ों नख़्ल हैं काहीदा भी बालीदा भी हैं
सैकड़ों बत्न-ए-चमन में अभी पोशीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल के हर क़तरे में तूफ़ान-ए-तजल्ली भर दे
बत्न-ए-हर-ज़र्रा से इक महर-ए-मुबीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
अभी तो बत्न-ए-ग़ैब में है इस सवाल का जवाब
ख़ुदा-ए-ख़ैर-ओ-शर भी ला नहीं सका था जिस की ताब
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
जो आता था सो वो हो रहता था उसी घर का
ज़मीं की नाफ़ है का'बा है बत्न-ए-मादर का
मोहम्मद अली तिशना
नज़्म
बत्न-ए-ख़ुर्शीद से आग के सुर्ख़ धब्बे की सूरत निकल कर
ख़ला के अँधेरे समुंदर में डूबी
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
नज़्म
तो बत्न-ए-तफ़क्कुर को उम्मीद के नान-ए-शीरीं से भर कर
शगुफ़्ता शुआ'ओं में सर को झुकाए
ज़मीर अज़हर
नज़्म
ज़ालिमों को रोक दे जो पल में उन की टोह से
नाक़ा-ए-सालेह करे पैदा जो बत्न-ए-कोह से