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नज़्म
बाइ'स-ए-दिल-बस्तगी अल्फ़ाज़ का जादू न हो
देख लफ़्ज़ों में निहाँ दम का कोई पहलू न हो
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
ज़ेब-ओ-ज़ीनत में तू ऐ जान-ए-जहाँ मशहूर है
ख़ैर ओ बरकत से तू ऐ हिन्दोस्ताँ मामूर है