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नज़्म
सनानें खींच ली हैं सर-फिरे बाग़ी जवानों ने
तू सामान-ए-जराहत अब उठा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
चौक चौक पर गली गली में सुर्ख़ फरेरे लहराते हैं
मज़लूमों के बाग़ी लश्कर सैल-सिफ़त उमडे आते हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सोहैब मुग़ीरा सिद्दीक़ी
नज़्म
राद हूँ बर्क़ हूँ बेचैन हूँ पारा हूँ मैं
ख़ुद-प्रुस्तार, ख़ुद-आगाह ख़ुद-आरा हूँ मैं
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जहाँ जज़्बात अहल-ए-दिल के ठुकराए न जाते हों
जहाँ बाग़ी न कहता हो कोई ख़ुद्दार इंसाँ को