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नज़्म
ख़ल्वत-ओ-जल्वत में तुम मुझ से मिली हो बार-हा
तुम ने क्या देखा नहीं मैं मुस्कुरा सकता नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
हुआ है बार-हा एहसास मुझ को इस हक़ीक़त का
तिरे नज़दीक रह कर भी मैं तुझ को पा नहीं सकता