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नज़्म
यही दस बीस अगर हैं कुश्तागान-ए-ख़ंजर-अंदाज़ी
तो मुझ को सुस्ती-ए-बाज़ू-ए-क़ातिल की शिकायत है
शिबली नोमानी
नज़्म
अमाँ कैसी कि मौज-ए-ख़ूँ अभी सर से नहीं गुज़री
गुज़र जाए तो शायद बाज़ू-ए-क़ातिल ठहर जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सरज़मीन-ए-हिन्द को जन्नत बनाने के लिए
कैसे कैसे दस्त-ओ-बाज़ू के शजर जाते रहे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
क्या सुनी भी है कभी मज़दूरों के दिल की पुकार
क्या कभी तू ने झिंझोड़े बाज़ू-ए-सरमाया-दार
शातिर हकीमी
नज़्म
सर-ब-सर इक मुज़्दा-ए-तसकीन-ए-मरदान-ए-ज़ईफ़
क़ुव्वत-ए-बाज़ू-ए-यारान-ए-जवाँ पैदा हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सर-ज़मीन-ए-हिंद का ये बाज़ू-ए-शमशीर-ज़न
जिस के मरदान-ए-जरी हैं शो'ला-बार-ओ-सफ़-शिकन
अर्श मलसियानी
नज़्म
कहीं नहीं है कहीं भी नहीं लहू का सुराग़
न दस्त-ओ-नाख़ुन-ए-क़ातिल न आस्तीं पे निशाँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अब अहरमन के हाथ में है तेग़-ए-ख़ूँ-चकाँ
ख़ुश है कि दस्त-ओ-बाज़ू-ए-यज़्दाँ चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बज़्म-ए-दोशंबा की हसरत तो नहीं है मुझ को
मेरी नज़रों में कोई और शबिस्ताँ है ज़रूर