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नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
ख़ुद बचन दे के 'जरा' सिंध से रन में भागे
रहे बद-गोई-ए-शिशुपाल पे ख़ामोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
उर्दू ज़बाँ का शे'र हो हिन्दी का या बचन
जौहर-शनास के लिए यकसाँ है हर सुख़न
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
क़ौम मज़हब से है मज़हब जो नहीं तुम भी नहीं
जज़्ब-ए-बाहम जो नहीं महफ़िल-ए-अंजुम भी नहीं