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नज़्म
आज की खोटी मंज़िल और बले कैसा कुंदहन रंज उगा है
आस के सैर जीवन सोतों से फूट बही घनघोर बधाई
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
क़ौम मज़हब से है मज़हब जो नहीं तुम भी नहीं
जज़्ब-ए-बाहम जो नहीं महफ़िल-ए-अंजुम भी नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो