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नज़्म
तुम में हिम्मत है तो दुनिया से बग़ावत कर दो
वर्ना माँ बाप जहाँ कहते हैं शादी कर लो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जो भी हो अकेले इंसाँ से दुनिया की बग़ावत कुछ भी नहीं
तन्हा जो किसी को पाएँगे ताक़त के शिकंजे जकड़ेंगे
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मिरी दुनिया में कुछ वक़अत नहीं है रक़्स ओ नग़्मा की
मिरा महबूब नग़्मा शोर-ए-आहंग-ए-बग़ावत है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हर एक बग़ावत छोड़ी है हर एक शरारत रुख़्सत है
अब घर में फ़रिश्ते आते हैं शैतान ने आना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
ये हुकूमत ये ग़ुलामी ये बग़ावत की उमंग
क़ल्ब-ए-आदम के ये रिसते हुए कोहना नासूर
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ख़ून की प्यास खादी के पैराहनों में
जगमगाते हुए क़ुमक़ुमे, पार्क, बाग़ात और म्यूजियम