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नज़्म
महव-ए-गुल-गश्त जहाँ हूर-ए-बहिश्ती मिल जाए
क़ाबिल-ए-रश्क वो गुलज़ार-ए-जिनाँ है उर्दू
अंजुम आज़मी
नज़्म
सरापा रंग-ओ-बू है पैकर-ए-हुस्न-ओ-लताफ़त है
बहिश्त-ए-गोश होती हैं गुहर-अफ़्शानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बहिश्त जैसे जाग उठे ख़ुदा के ला-शुऊर में!
मैं जाग उठा ग़ुनूदगी की रेत पर पड़ा हुआ
नून मीम राशिद
नज़्म
कोई रात को पुकारे प्यारे मैं भीगती हूँ
क्या तेरी उल्फ़तों के मारे मैं भीगती हूँ
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
इसी वीराना में इक दिन बहिश्तें लहलहाती थीं
अख़्तर शीरानी
नज़्म
रश्क-ए-शीराज़-कुहन हिन्दोस्ताँ की आबरू
सर-ज़मीन-ए-हुस्न-ओ-मौसीक़ी बहिश्त-ए-रंग-ओ-बू