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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
रात में जिन के बच्चे बिलकते हैं और
नींद की मार खाए हुए बाज़ुओं में सँभलते नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दयार-ए-शर्क़ की आबादियों के ऊँचे टीलों पर
कभी आमों के बाग़ों में कभी खेतों की मेंडों पर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
सुना है तुम ने अपने आख़िरी लम्हों में समझा था
कि तुम मेरी हिफ़ाज़त में हो मेरे बाज़ुओं में हो