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नज़्म
ऐ ख़ाक-नशीनो उठ बैठो वो वक़्त क़रीब आ पहुँचा है
जब तख़्त गिराए जाएँगे जब ताज उछाले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सफ़ीर-ए-लैला यही खंडर हैं जहाँ से आग़ाज़-ए-दास्ताँ है
ज़रा सा बैठो तो मैं सुनाऊँ
अली अकबर नातिक़
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
अम्मी कहतीं खेल न खेलो घर के काम में हाथ बटाओ
अब्बू कहते पढ़ने बैठो टी-वी में मत वक़्त गँवाओ
असना बद्र
नज़्म
तुम बैठो मैं तो आई पे जी से गुज़र चुकूँ
इतने दिनों तो दिल की लगी ने ख़ुदाई की