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नज़्म
वो सोज़-ओ-साज़-ए-मोहब्बत वो पुर-फ़ुसूँ रातें
वो हल्का हल्का तरन्नुम वो जाँ-फ़ज़ा बातें
सिद्दीक़ कलीम
नज़्म
क़ुमरियाँ मीठे सुरों के साज़ ले कर आ गईं
बुलबुलें मिल-जुल के आज़ादी के गुन गाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
फ़लक ने ज़ीनत-ए-निस्याँ बना के छोड़ दिया
रुसूम-ए-लुत्फ़ को दिल-जूई के क़रीनों को
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
मता-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-ज़िंदगी पैमाना ओ बरबत
मैं ख़ुद को इन खिलौनों से भी अब बहला नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आरिज़-ए-पुर-नूर झलका गेसु-ए-शब-रंग से
जू-ए-बार-ए-साज़-ए-दिल निकली सुकूत-ए-संग से
मयकश अकबराबादी
नज़्म
ख़ुदी का ज़ख़मा है मिज़राब-ए-साज़-ए-कौन-ओ-मकाँ
ख़ुदी का साज़ ग़ज़ल-ख़्वाँ नहीं तो कुछ भी नहीं
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
ज़ुल्फ़ का अब्र-ए-सियह बाज़ू-ए-सीमीं पे लिए
फिर कोई नग़्मा-ज़न-ए-साज़-ए-बहार आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आ, बाग़ियों का ज़मज़मा-ए-आतिशीं भी सुन
ओ मस्त-ए-साज़-ओ-बरबत-ओ-नग़्मा इधर भी आ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं ने देखा है शिकस्त-ए-साज़-ए-उल्फ़त का समाँ
अब किसी तहरीक पर बरबत उठा सकता नहीं