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नज़्म
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
जब पढ़ाई करते करते बोर हो जाता हूँ मैं
दाब कर बल्ला बग़ल में फ़ील्ड पर आता हूँ मैं
इनायत अली ख़ाँ
नज़्म
गिरते घरौंदे उठती उमंगें हाथों में गागर भरी
कानों में बाले चाँदी के हाले पलकें घनी खुरदुरी
महबूब ख़िज़ां
नज़्म
कुर्सी को मज़बूत न कहना बात बड़ी मुँह छोटा सा है
कुर्सी तोड़ तमाशा करते अक्सर लड़के बाले देखे
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
नज़्म
आज की खोटी मंज़िल और बले कैसा कुंदहन रंज उगा है
आस के सैर जीवन सोतों से फूट बही घनघोर बधाई
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
मिट्टी की माँ बहनें अपनी मिट्टी के हैं बच्चे-बाले
झूला झूलें सब मिट्टी का सब के तराने मिट्टी के