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नज़्म
आहन की सलाबत में उभरा मा'सूम तसव्वुर नर्मी का
फूलों की लताफ़त में उमडा आहन बन जाने का जज़्बा
साग़र निज़ामी
नज़्म
है कोई तो बात जो वो आवाज़ दबाने पे आमादा है
लगा ले जितना दम हो अपना भी मज़बूत इरादा है
सचिन देव वर्मा
नज़्म
बयाज़-ए-दिल को जो खोलें तो जुस्तुजू होगी
हर एक सफ़्हा-ए-हस्ती की गुफ़्तुगू होगी