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नज़्म
गरेबाँ चाक हो मजनूँ-सिफ़त गर शौक़-ए-लैला है
फिरा कर दश्त-ए-वहशत में मिसाल-ए-क़ैस तू पहले
नारायण दास पूरी
नज़्म
ज़माना गुज़रा कि फ़रहाद ओ क़ैस ख़त्म हुए
ये किस पे अहल-ए-जहाँ हुक्म-ए-संग-बारी है
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
तुम चाहो तो बस्ती छोड़े तुम चाहो तो दश्त बसाए
ऐ मतवालो नाक़ों वालो वर्ना इक दिन ये होगा