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नज़्म
ये किताब ओ ख़्वाब के दरमियान जो मंज़िलें हैं मैं चाहता था
तुम्हारे साथ बसर करूँ
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
देखो हम ने कैसे बसर की इस आबाद ख़राबे में
शहर-ए-तमन्ना के मरकज़ में लगा हुआ है मेला सा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ये कह कह कर बसर की उम्र हम ने क़ैद-ए-उल्फ़त में
वो अब आज़ाद करते हैं वो अब आज़ाद करते हैं
राम प्रसाद बिस्मिल
नज़्म
ख़ुतूत-ए-रुख में जल्वा-गर वफ़ा के नक़्श सर-ब-सर
दिल-ए-ग़नी में कुल हिसाब-ए-दोस्ताँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
तहज़ीब जहाँ थर्राती है तारीख़-ए-बशर शरमाती है
मौत अपने कटे पर ख़ुद जैसे दिल ही दिल में पछताती है