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नज़्म
है अहल-ए-दिल के लिए अब ये नज़्म-ए-बस्त-ओ-कुशाद
कि संग-ओ-ख़िश्त मुक़य्यद हैं और सग आज़ाद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी के दस्त-ए-इनायत ने कुंज-ए-ज़िंदाँ में
किया है आज अजब दिल-नवाज़ बंद-ओ-बस्त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मैं आया अब तो मिरा बंद-ओ-बस्त होगा तमाम
तू मुझ से आन के मिल छोड़ अपनी ज़िद का कलाम
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
इस नाज़ पे अंदाज़ पे शोख़ी पे अदा लाए
यादों में ख़यालों में तसव्वुर में बसा जाए