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नज़्म
है अहल-ए-दिल के लिए अब ये नज़्म-ए-बस्त-ओ-कुशाद
कि संग-ओ-ख़िश्त मुक़य्यद हैं और सग आज़ाद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
और अब के साल भी ख़ुद देख लेंगे ये सरकार
कि गूँजते हैं अक़ीदत से कूचा-ओ-बाज़ार
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
हैं सितारों की ये लड़ियाँ या चराग़ों की क़तार
कूचा-ओ-बाज़ार के दीवार-ओ-दर हैं नूर-बार
मोहम्मद सिद्दीक़ मुस्लिम
नज़्म
इस तरह हैं कूचा-ओ-बाज़ार पर नक़्श-ओ-निगार
हो अयाँ हुस्न-ए-निगारिस्ताँ की जिन से ख़ूब रे