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नज़्म
पीते हैं मय के प्याले और देखते हैं जंगले
कितने फिरे हैं बाहर ख़ूबाँ को अपने संग ले
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
नूर से कुछ इस तरह है चश्म तेरी तर-ब-तर
चाँदनी का अक्स जों उतरा हो सत्ह-ए-आब पर
जय राज सिंह झाला
नज़्म
कि तुम्हें आग की बारिश से तर-ब-तर न होने दें
सर्फ़-ओ-नहव का साएबान इतना बड़ा नहीं है
अहमद जावेद
नज़्म
मेरी ज़ुल्फ़ों में उलझी हुई रेशम से तर-ब-तर ये आँखें
कभी होंठ बन कर तुम्हारी साँसों की आहट को
दर्शिका वसानी
नज़्म
मुंहमिक कपड़े बदलने में थी वो ग़ुस्ल के बा'द
तर-ब-तर भीगी हुई सारी में बदमस्त शबाब
अफ़ज़ल हुसैन अफ़ज़ल
नज़्म
चौदहवीं की शब है लेकिन मातमी मल्बूस में लिपटी हुई है
चाँदनी भी आँसुओं में तर-ब-तर है
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का गोश्त
शाह-राहों पे ग़रीबों का लहू बहता है