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नज़्म
निकाला मुम्तहिन ने नक़्ल करने से तो बोले हम
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कमरे से हम निकले
हिफ़ज़ान अहमद हाशमी
नज़्म
अब किताबों, तख़्तियों की बे-मज़ा छाँव तले घुटता है दम
अब बदन छुपता नहीं अख़बार के मल्बूस में
सईद अहमद
नज़्म
तेरा चेहरा अर्ग़वानी तेरा दिल-ए-बे-आब-ओ-रंग
ज़िंदगी क्या है तिरी क़ानून से फ़ितरत के जंग