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नज़्म
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
सियाह रातों के बे अमाँ रास्तों पे छिटके हुए ये चेहरे
कि जैसे पतझड़ में बिखर गए हों
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
तू ने रम्ज़-ए-क़ल्ब-ए-मख़्फ़ी आश्कारा कर दिए
मा'नी-ए-इल्म-ओ-अमल पर्दा से बे-पर्दा किए