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नज़्म
जिन में था इक हौज़ तेरा और उस में फूल बाग़
जो उतारे हैं बदन से बे-बदन, क्या चूम लूँ!
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
वो प्रेमचंद-मुंशी-ए-बे-मिस्ल-ओ-बे-बदल
थी जिस के दम से बज़्म-ए-अदब में चहल-पहल