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नज़्म
हो गए अक़्ल-ओ-ख़िरद नज़्र-ए-जुनूँ तेरे बग़ैर
दिल है और आठों-पहर इक वहशत-ए-बे-इख़्तियार
जौहर निज़ामी
नज़्म
सीना-ए-कोहसार पर चढ़ती हुई बे-इख़्तियार
एक नागन जिस तरह मस्ती में लहराती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बाहें गले में डालो बे-इख़्तियार दोनों
हाँ छोड़ दो ये रंजिश बन जाओ यार दोनों
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
दिल में जब अशआर की होती है बारिश बे-शुमार
नुत्क़ पर बूँदें टपक पड़ती हैं कुछ बे-इख़्तियार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सदा अपने चमन में दौर-दौरा हो बहारों का
'हबीब' अपनी ज़बाँ पर ये दुआ बे-इख़्तियार आई