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नज़्म
अर्श सिद्दीक़ी
नज़्म
रहेगी मेरे दिल में तेरी उल्फ़त कारगर कब तक
मुझे मसहूर रक्खेगा ये इश्क़-ए-बे-समर कब तक
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ना-रसाई के कर्ब से दिल-ए-शिकस्ता और पा-फ़िगार राही
कि जिस की हर सई-ए-बे-समर ने
अकमल मुबारक गिलानी
नज़्म
आरज़ूमंद आँखें बशारत-तलब दिल दुआओं को उट्ठे हुए हाथ सब बे-समर रह गए
और हवा चुप रही