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नज़्म
ढल चुकी रात बिखरने लगा तारों का ग़ुबार
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदा चराग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सब अफ़्साने झूटे हैं, सब ख़्वाब बिखरने वाले हैं
इस ला-फ़ानी झूट के पीछे सच है अगर तो इतना है
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
फ़र्श बिस्तर पे बिखरने लगे अफ़्शाँ के चराग़
मुज़्महिल सी नज़र आने लगीं इशरत-गाहें