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नज़्म
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ऐ 'अज़ीज़-ए-महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न तुझ को सलाम
ऐ सबा-ए-सुब्ह-दम ज़ेब-ए-चमन तुझ को सलाम
सफिया अंकोलवी
नज़्म
तुम हो वो राज़ कि जिस राज़ को हर लम्हे ने
शेर-ओ-नग़्मा की फ़ज़ाओं में सजाए रक्खा
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
'मीर' का शेर-ओ-नग़्मा तू ने क़दम क़दम पर गाया है
'ग़ालिब' के एहसास ने तेरा आईना चमकाया है
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
शेर-ओ-नग़्मा हैं तिरी राह-ए-तवज्जोह में बिछे
ख़ैर-मक़्दम में तिरे रंग पे है रंग-भवन
बेकल उत्साही
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
मुझे रंगून से जब दावत-ए-शेर-ओ-सुख़न आई
तबीअत फ़ासले और वक़्त के चक्कर से घबराई
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न दोस्तो बे-फ़ैज़ हुई
गुल करो शम'एँ चराग़ों की लवें ज़ख़्मी करो
जावेद अकरम फ़ारूक़ी
नज़्म
ख़्वाब-ए-गिराँ से ग़ुंचों की आँखें न खुल सकीं
गो शाख़-ए-गुल से नग़्मा बराबर उठा किया