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नज़्म
गुज़री बात सदी या पल हो गुज़री बात है नक़्श-बर-आब
ये रूदाद है अपने सफ़र की इस आबाद ख़राबे में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जब पढ़ाई करते करते बोर हो जाता हूँ मैं
दाब कर बल्ला बग़ल में फ़ील्ड पर आता हूँ मैं
इनायत अली ख़ाँ
नज़्म
कोई बच्चा चीख़ता है और कोई करता है शोर
क्यूँकि ये इक दूसरे को छेड़ कर करते हैं बोर
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की