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नज़्म
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जब इस अँगारा-ए-ख़ाकी में होता है यक़ीं पैदा
तो कर लेता है ये बाल-ओ-पर-ए-रूह-उल-अमीं पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरे सफ़र के साथियो! तुम्हीं से पूछता हूँ मैं
बताओ क्या सनम मिले, बताओ क्या ख़ुदा मिला
आमिर उस्मानी
नज़्म
बहुत होंगे मुग़न्नी नग़्मा-ए-तक़लीद यूरोप के
मगर बेजोड़ होंगे इस लिए बे-ताल-ओ-सम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
सितमगरों की सितमगरी पर हज़ार-हा वार कर चुकी है
कोई बताओ वो कौन सा मोड़ है जहाँ हम झिजक गए हैं
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
पस्ती-ए-ख़ाक पे कब तक तिरी बे-बाल-ओ-परी
फिर मक़ाम अपना सर-ए-अर्श-ए-बरीं पैदा कर