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नज़्म
और बुलबुल मुतरिब-ए-रंगीं नवा-ए-गुलसिताँ
जिस के दम से ज़िंदा है गोया हवा-ए-गुलसिताँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आज भी मैं सुन रहा हूँ नग़्मा-हा-ए-जाँ-फ़ज़ा
दौड़ती है साज़-ए-हस्ती में तिरी रंगीं नवा
सहबा लखनवी
नज़्म
बुलबुल-ए-मस्त-नवा दश्त में क्यूँ रहने लगी
नग़्म-ए-तर की जगह मर्सिया क्यूँ कहने लगी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
मुझे तेरी मोहब्बत की क़सम ऐसा न होना था
ग़म-ए-दरमाँ कसीर और दर्द कम ऐसा न होना था