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नज़्म
इक शाम जो उस को बुलवाया कुछ समझाया बेचारे ने
उस रात ये क़िस्सा पाक किया कुछ खा ही लिया दुखयारे ने
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ये सरगोशियाँ कह रही हैं अब आओ कि बरसों से तुम को बुलाते बुलाते मिरे
दिल पे गहरी थकन छा रही है
मीराजी
नज़्म
आ आ के हज़ारों बार यहाँ ख़ुद आग भी हम ने लगाई है
फिर सारे जहाँ ने देखा है ये आग हमीं ने बुझाई है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जब आधा दिन ढल जाता है तो घर से अफ़सर आता है
और अपने कमरे में मुझ को चपरासी से बुलवाता है
मीराजी
नज़्म
हँसें बोलें कहीं आवारागर्दी के लिए निकलें
चलें और चल के सारे दोस्तों को फिर बुला लाएँ