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नज़्म
बुनियाद-ए-ग़ुरूर-ओ-किब्र-ओ-अना को ठोकर से ढा देती है
तदबीर की आख़िर नाकामी तक़दीर को मनवा देती है
सरीर काबिरी
नज़्म
इस तरह लरज़े में है बुनियाद-ए-ऐवान-ए-फ़रंग
खा चुके हैं मात गोया शीशा-बाज़ान-ए-फ़रंग
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
बज़्म-ए-ख़ामोश में छिड़ने को है फिर साज़-ए-हयात
मुंतज़िर बैठे हैं सब गोश-बर-आवाज़-ए-हयात
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
इसी यक़ीं से जो इक ख़त्त-ए-मुसतक़ीम-ए-हयात
ज़मीं पे खींचना चाहें तो हम हैं सौदाई
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
कट मरा नादाँ ख़याली देवताओं के लिए
सुक्र की लज़्ज़त में तू लुटवा गया नक़्द-ए-हयात