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नज़्म
एक सुर जिस की बुन्तर में आवाज़ की गाँठ आई न हो
जिस के शफ़्फ़ाफ़ तन पर किसी लफ़्ज़ का कोई गहना न हो
सलमान हैदर
नज़्म
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कल और आएँगे नग़्मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझ से बेहतर कहने वाले तुम से बेहतर सुनने वाले
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हमेशा से बपा इक जंग है हम उस में क़ाएम हैं
हमारी जंग ख़ैर ओ शर के बिस्तर की है ज़ाईदा
जौन एलिया
नज़्म
बुतान-ए-रंग-ओ-ख़ूँ को तोड़ कर मिल्लत में गुम हो जा
न तूरानी रहे बाक़ी न ईरानी न अफ़्ग़ानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मेरे सपने बुनती होंगी बैठी आग़ोश पराई में
और मैं सीने में ग़म ले कर दिन-रात मशक़्क़त करता हूँ