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नज़्म
जो भलाई में मज़ा है वो बुराई में नहीं
बंदगी में जो मज़ा है वो ख़ुदाई में नहीं
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
मैं बुराई राम की करता हूँ जा कर शाम से
शाम ने जो कुछ कहा वो राम तक लाता हूँ मैं