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नज़्म
सुब्ह को इस के लिए क्या क्या तरसती है नसीम
क्या क़यामत है गुल-ए-शब-बू की जाँ-परवर शमीम
सय्यद मोहम्मद हादी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सुब्ह-दम बाद-ए-सबा की शोख़ियाँ काम आ गईं
लाला-ओ-गुल को बग़ल-गीरी का मौक़ा मिल गया
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
क़स्र-ए-तौहीद का इक बुर्ज-ए-मुनव्वर तू है
गुलशन-ए-हक़ के लिए बू-ए-गुल-ए-तर तू है
मोअज़्ज़म अली खां
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरी गुफ़्तार में बाद-ए-सबा की गुल-फ़िशानी थी
तिरे अफ़्कार में दरिया के पानी की रवानी थी