aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "chaadar-e-shab"
शहर-ए-दिल की गलियों मेंशाम से भटकते हैं
सोने लगती है सर-ए-शाम ये सारी दुनियाइन के हुजरों में न दर है न दरीचा कोई
चराग़ राह में उस के अमल से जलने लगेलो आज सुब्ह-ए-शब-ए-इंतिज़ार आ ही गई
उजाला सा उजाला है तिरी शम-ए-हिदायत काशब-ए-तीरा में भी इक रौशनी महसूस होती है
मिसाल-ए-चादर-ए-शब-ताब जगमगाने लगेकि थरथराते हुए आँसुओं से साग़र-ए-शाम
और हो जाती हैं गहरी चादर-ए-शब की तहेंऔर छा जाती है सँवलाए हुए लम्हों की धूल
ख़ुशबू भी उड़ीऔर गेसु-ए-शब में जा उलझी
फिर सँभाले हुए मैं दामन-ए-शबउस की पलकों के साए में अक्सर
वो सब्ज़ चादर-ए-गुल-ताबआरिज़-ए-महताब
मर कर मिली है चादर-ए-ख़ाक-ए-वतन मुझेमिट्टी ने इस ज़मीं की दिया है कफ़न मुझे
हुनर की चादर-ए-बा-ज़ेब उस ने पहनी हैमआशियात की पाज़ेब उस ने पहनी है
रुख़ से आहिस्ता उलट कर चादर-ए-आब-ए-रवाँदेखती थी मुस्कुरा कर मंज़र-ए-आब-ए-रवाँ
मिसाल-ए-चादर-ए-ज़ैनब बढ़ाऊँ मान ज़हरा कामिरे अज़्म-ए-सफ़र में आज तक लग़्ज़िश नहीं आई
इस चादर-ए-अफ़्लाक के अंदररिदा-ए-ख़ाक के अंदर
और हर कुश्ता-ए-वामाँदगी-ए-आख़िर-ए-शबभूल कर साअत-ए-दरमांदगी-ए-आख़िर-ए-शब
कोई आता हैआ कर चादर-ए-ग़म को बड़ी आहिस्तगी से
मुसाफ़िर-ए-रह-ए-सहरा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब सेअब इल्तिफ़ात-ए-निगार-ए-सहर की बात सुनो
तैरने नहीं देतारेग-ए-साहिल-ए-शब पर
और अबग़ुबार-ए-रोज़-ओ-शब के
रौज़न-ए-दीवार-ए-शबख़ुश-अदा पुरकार है
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