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नज़्म
लो इक जी-दार बिसाती ने हर चीज़ लगा दी चार आने
कंघी जापानी चार आने शीशा बग़्दादी चार आने
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
और किसी चार आईने के रिसते घाव में मिला नहीं है
जिस को इस का राज़ मिले वो हस्ब-ज़ेल पते पर पहुँचा दे:
अनीस नागी
नज़्म
अब वक़्त-ए-सफ़र आ पहुँचा है आ मिल बैठें दो-चार घड़ी
जब पहले-पहल तुम आए थे आग़ाज़-ए-सहर का मेला था
रबीअा फख़री
नज़्म
फ़ारिया हमीद चौधरी
नज़्म
उदासी छा रही है किस लिए 'इन'आम' चेहरों पर
परीदा रुख़ का रंग-ओ-नूर क्यों है हम समझते हैं
इनाम थानवी
नज़्म
टूटी फूटी मोरी में इक मच्छर साहब रहते हैं
शायद वो घर में भी अपने मच्छर ही कहलाते हैं