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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुनीर-उल-हसन मुनीर
नज़्म
फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना
फिर रंग पे है शोला-ए-रुख़्सार-ए-हक़ीक़त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हज़ारों सदियों की दूरियों पर चला गया है.......!
कोई नहीं जानता के कैसे वो ना-मुकम्मल शिकस्ता उंसुर