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नज़्म
वो सब इक बर्फ़ानी भाप की चमकीली और चक्कर खाती गोलाई थे
सो मेरे ख़्वाबों की रातें जलती और दहकती रातें
जौन एलिया
नज़्म
मुफ़्लिस का हाल आह बयाँ क्या करूँ मैं यार
मुफ़्लिस को इस जगह भी चबाती है मुफ़्लिसी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ख़िराम-ए-नाज़ पाया आफ़्ताबों ने सितारों ने
चटक ग़ुंचों ने पाई दाग़ पाए लाला-ज़ारों ने