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नज़्म
ये हर इक सम्त पुर-असरार कड़ी दीवारें
जल-बुझे जिन में हज़ारों की जवानी के चराग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जलाना है मुझे हर शम-ए-दिल को सोज़-ए-पिन्हाँ से
तिरी तारीक रातों में चराग़ाँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरा यक़ीं न रहा मुझ पे हो गया ज़ाहिर
कि भटकी रूहों को जुगनू नहीं दिखाते चराग़
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
लवों से जिन के चराग़ाँ हुई थी बज़्म-ए-हयात
जिन्हों ने हिन्द की तहज़ीब को ज़माना हुआ
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मेहराब है रुख़्सार के परतव से ज़र-अफ़्शाँ
ज़ुल्फ़ों में शब-ए-तार है आँखों में चराग़ाँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जब शोला-ए-मीना सर्द हो ख़ुद जामों को फ़रोज़ाँ कौन करे
जब सूरज ही गुल हो जाए तारों में चराग़ाँ कौन करे
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
चलो कि चल के चराग़ाँ करें दयार-ए-हबीब
हैं इंतिज़ार में अगली मोहब्बतों के मज़ार
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जिस के ख़ून-ए-गरम से बज़्म-ए-चराग़ाँ ज़िंदगी
जिस के फ़िरदौसी तनफ़्फ़ुस से गुलिस्ताँ ज़िंदगी
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जिस तसव्वुर से चराग़ाँ है सर-ए-जादा-ए-ज़ीस्त
उस तसव्वुर की हज़ीमत का गुनहगार बनूँ