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नज़्म
फ़रोग़-ए-माह से क्या जगमगा रही है बहार
गुलों में नूर की शमएँ जला रही है बहार
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
अहमरीं साग़र, लब-ए-ल'अलीं, निगाहें मय-फ़रोश
हर तरफ़ है एक मस्ती, हर तरफ़ है इक ख़रोश
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
फिर उस की चश्म-ए-मस्त पे गेसू हों पुर-फ़िशाँ
फिर अब्र-ए-शाम-गूँ सर-ए-मय-ख़ाना चाहिए
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जाम पुर-शोर से गिर जाने दो नाकाम तमन्नाओं की मय
फ़र्श-ए-मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त पे उलट दो साग़र
ज़ाहिदा ज़ैदी
नज़्म
देख ले चश्म-ए-बसीरत से ज़माने का निज़ाम
मुझ से ऐ दोस्त मिरे ग़म की सदाक़त मत पूछ
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
नज़्म
सज़ा-ए-ख़्वेश है ख़ुद सत्ह-ए-चश्म-ए-ज़ाहिर में
जिसे मआ'नी-ए-शाइ'र पे ए'तिबार नहीं