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नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ज़रा सी ठेस के ख़तरे से दिल दहलता है
हम अपनी नाज़ुकी-ए-चश्म-ए-नम से वाक़िफ़ हैं
ज़हीर नाशाद दरभंगवी
नज़्म
बा-चश्म-ए-नम है आज ज़ुलेख़ा-ए-काएनात
ज़िंदाँ-शिकन वो यूसुफ़-ए-ज़िंदाँ चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
छुपा के रक्खा है पलकों ने इक समुंदर को
जो चश्म-ए-नम से गिरी बूँद वो लहू होगी