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नज़्म
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़ज़ाओं में सँवारा इक हद-ए-फ़ासिल मुक़र्रर की
चटानें चीर कर दरिया निकाले ख़ाक-ए-असफ़ल से
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मीराजी
नज़्म
ख़िराम-ए-नाज़ पाया आफ़्ताबों ने सितारों ने
चटक ग़ुंचों ने पाई दाग़ पाए लाला-ज़ारों ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुनो आवाज़ सी आती है उन ख़ाकी चटानों से
कि जिन में वो ब-रंग-ए-नग़्म-ए-बेगाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तआक़ुब में लुटेरे हैं चटानें राह में हाएल
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ