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नज़्म
जान कर भी क्या कर लेती वो भी एक वैश्या थी
काम उन का लोगों को सुख देना था चिंता नहीं
अंकिता गर्ग
नज़्म
मीराजी
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
आँखों को ठंडक देती हैं मन की चिंता हर लेती हैं
आकाश पे जब छा जाती हैं घनघोर घटाएँ भारत की
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
आँखों को ठंडक देती हैं मन की चिंता हर लेती हैं
आकाश पे जब छा जाती हैं घनघोर घटाएँ भारत की
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
ऐसे माहौल में कुछ कहना बड़ा मुश्किल है
घर की चिंता है इसे या है ज़माने की फ़िक्र