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नज़्म
आँखों में चुभ रहे हैं प्यारों के लाल जोड़े
क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हर इक सम्त अब अनोखे लोग हैं और उन की बातें हैं
कोई दिल से फिसल जाती कोई सीने में चुभ जाती
मीराजी
नज़्म
आख़िर तुम्हारी चुप दिलों में अहल-ए-दिल के चुभ गई
सच है कि चुप की दाद आख़िर बे-मिले रहती नहीं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
राह में चलते हुए ठोकर लगी और गिर पड़े
यूँही काँटे चुभ गए हैं, फट गई है आस्तीं
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
उसे बताना वो बद-नसीबी का एक काँटा कभी जो तलवे में चुभ गया था निकल चुका है
कि वक़्त करवट बदल चुका है
तारिक़ क़मर
नज़्म
आप का इरशाद सर-आँखों पे लेकिन डर ये है
चुभ न जाए फाँस बन कर दिल में ये नाज़ुक सी शय
शातिर हकीमी
नज़्म
ज़मीन के साथ दिल के रिश्ते भी बाँटती हैं
कई दिलों में तवील अर्से से चुभ रही हैं