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नज़्म
तख़्त-ओ-ताज की दुनिया तुझ को रास हमेशा आई है
तेरे सर पर तो झंडे की चुनरी ही लहराई है
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
ख़्वाहिशों की आग को फिर ध्यान की चुनरी में कफ़्नाए हुए
मुंतज़िर हूँ फिर उसी आवाज़ का
यूसुफ़ कामरान
नज़्म
मैं तेरी चुनरी को तान कर ख़ुद पे रात तख़्लीक़ कर रहा हूँ
तिरी ही बिंदिया से नूर ले कर
नदीम नाजिद
नज़्म
घर-बार अटारी चौपारी क्या ख़ासा नैन-सुख और मलमल
चलवन पर्दे फ़र्श नए क्या लाल पलंग और रंग-महल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
खेती हो या सौदागरी हो भीक हो या चाकरी
सब का सबक़ यकसाँ सुना मेहनत करो मेहनत करो