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नज़्म
जाने कैसी कैसी हिकायत देख उसे याद आती थी
पहली दफ़अ' जब साथ थे बैठे क्लास के अंदर हम दोनों
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
जब क्लास से टीचर जाते हैं तो कितनी मसर्रत होती है
हम मिल कर शोर मचाते हैं तो कितनी मसर्रत होती है
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
तुम्हें मालूम है ना
हमारा सहन छोटा है और उस में चंद ख़्वाब ही ब-मुश्किल पूरे उतरते हैं
ज़ेहरा अलवी
नज़्म
वो साथी हो के आजिज़ सामने फ़रियाद लाता है
क्लास उस बेबसी पर चुपके चुपके मुस्कुराता है
शमीम करहानी
नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये क़ुलक़ुल तीसरा पैग अब तो चौथा हो गुमाँ ये है
गुमाँ का मुझ से कोई ख़ास रिश्ता हो गुमाँ ये है
जौन एलिया
नज़्म
इश्क़ की मस्ती से है पैकर-ए-गिल ताबनाक
इश्क़ है सहबा-ए-ख़ाम इश्क़ है कास-उल-किराम