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नज़्म
आओ अपने दिल में दर्द-ए-ला-दवा पैदा करें
शिद्दत-ए-ग़म में मसर्रत का मज़ा पैदा करें
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
जो शम्अ-ए-इल्म-ए-मग़रिब सय्यद ने की थी रौशन
बिखरी हुई हैं जिस की किरनें हर अंजुमन में
फ़ानी बदायुनी
नज़्म
शाही दरबारों के दर से फ़ौजी पहरे ख़त्म हुए हैं
ज़ाती जागीरों के हक़ और मोहमल दा'वे ख़त्म हुए हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये दर्द-ए-ला-दवा दिल में जगाया किस लिए तू ने
ख़िरद इदराक अक़्ल-ओ-फ़हम सब बेगार हों जैसे
सलमान अंसारी
नज़्म
दम-ए-कोहसार में ढूँडा तो न निकला कुछ भी
बर्फ़ पर छिड़की हुई ख़ून की ख़ुशबू के सिवा