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नज़्म
कितने ही हम से रूप के रसिया आए यहाँ और चल भी दिए
तुम हो कि इतने हुस्न के होते एक न दामन थाम सके
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ऐ कि तू इक जौहर-ए-तेग़-ए-दिल-ए-इस्लाम थी
तेरी हस्ती यादगार-ए-रौनक़-ए-अय्याम थी
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
है बहर-ए-इल्म तेरी रवानी से सर-बसर
दामान-ओ-जेब-ए-उर्दू-ओ-हिन्दी हैं पुर-गुहर
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
कोई अपना हो पराया हो गले सब से मिले
मेल हो सब से यही तो मक़्सद-ए-इस्लाम है
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
जो मिरी बात समझता वो सुख़न-दाँ न मिला
कुफ़्र ओ इस्लाम की ख़ल्वत में भी जल्वत में भी
राही मासूम रज़ा
नज़्म
दामन-ए-तीरीकी-ए-शब की उड़ाती धज्जियाँ
क़स्र-ए-ज़ुल्मत पर मुसलसल तीर बरसाती हुई