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नज़्म
कितने तो भंग पी पी कपड़े भिगो रहे हैं
बाहें गुलों में डाले झूलों में सो रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
इस गिरानी में भला क्या ग़ुंचा-ए-ईमाँ खिले
जौ के दाने सख़्त हैं ताँबे के सिक्के पिल-पिले
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सच बता तू भी है क्या ऐ कुश्ता-ए-सद-हिर्स-ओ-आज़
राज़-दान-ए-काकुल-ए-शब-रंग ओ चश्म-ए-नीम-बाज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तसलसुल और तवातुर के दवाइर में थिरकती हैं
सुरों के दाने इक तस्बीह बन जाते हैं ''लय'' के नर्म हाथों में
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
चिड़ियों की तरह दाने पे गिरता है किस लिए
पर्वाज़ रख बुलंद कि तू बन सके उक़ाब
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
दाने दाने को तरस जाता है दानों में घिरा
मुश्त-ए-पर ख़ाक में ढल जाती है रफ़्ता रफ़्ता