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नज़्म
सब गलियों में तरनजन थे और हर तरनजन में सखियाँ थीं
सब के जी में आने वाली कल का शौक़-ए-फ़रावाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
बदल दे क़िस्सा-ए-मजनून-ए-पाबंद-ए-सलासिल को
बदल दे दास्तान-ए-कोहना-ए-लैला-ए-महमिल को
बर्क़ आशियान्वी
नज़्म
दास्तान-ए-आलम-ए-फ़ुर्क़त किसी से क्या कहें
हो गया बरबाद हर ज़र्रा दिल-ए-नाशाद का
राज्य बहादुर सकसेना औज
नज़्म
दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म जब सुन चुकी वो नाज़नीं
नाज़ से बोली कि ये सब सच है हाँ ऐ नुक्ता-चीं
नबीउल हसन शमीम
नज़्म
कोई अंजुम आसमाँ का और सुबुक परवाज़-ए-शौक़
रहनुमा है क्या तिरा दिल-दादा-ए-अंदाज़-ए-शौक़